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डेथ एंजेल एंड ए विंटर बॉय

"उस अंधेरी रात जब मैने पहली बार अपनी आंखे खोली तो लगा की ईश्वर ने मुझे एक अवसर दिया है अपनी भूल सुधारने का…….किंतु नही। मेरे हाथों उतना बड़ा भी गुनाह नहीं हुआ था जितनी बड़ी ईश्वर ने मुझे सजा दी थी। मेरा प्रारंभ भी बाकियों की तरह ही जन्म से हुआ था किंतु अब मुझे प्रतिक्षा थी तो सिर्फ और सिर्फ अपनी मृत्यु की जोकि मुझे कभी प्राप्त नहीं होने वाली थी। मै हमेशा हमेशा के लिए अपने इस नश्वर शरीर के साथ ही बंधकर रह गया था। मुझे पृथ्वी पर आए हुए कितने वर्ष हो चुके है ये तो मै भी नही जानता क्योंकि इतनी गिनती तो मुझे नही आती लेकिन मैने सहस्त्रों युगों को बदलते हुए देखा है और पृथ्वी को अनेकों बार प्रलय की विनाशकारी लहरों की चपेट में आते हुए देखा है।

वर्तमान में मै कलयुगी मनुष्यों के बीच में रहता हूं और सच बताऊं तो यदि मै अपने और इन मनुष्यों के बीच तुलना करूं तो इनके अंदर मुझसे लाख गुना अधिक बुराइयां है। मै हैरान हूं ये देखकर की जिन मनुष्यों को ईश्वर अपनी श्रेष्ठतम कृति मानता है वे स्वयं ही अपने अंत की ओर अग्रसर है और ईश्वर कुछ भी नहीं कर पा रहा।

आप सोच रहे होंगे की मै कौन हूं जो इस तरह की बाते कर रहा है तो मैं आपको बता दूं की इस सवाल का जवाब आज तक मुझे नही मिला तो मै आप लोगों को कैसे दे दूं। आप लोगों की जानकारी के लिए मै सिर्फ इतना ही बता सकता हूं की इस कहानी में मेरी भूमिका ठीक वैसी ही है जैसी किसी भवन के निर्माण में उसकी नीव की भूमिका होती है। हमारी जिम्मेदारी सबसे ज्यादा होती है लेकिन वो किसी को प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं देती।

मै आप लोगों को अपने बारे में कभी विस्तार से बताऊंगा और अपने नजरिए से आप लोगों को इस कहानी को सुनाऊंगा किंतु तब तक आप उन लोगों का नजरिया जान लीजिए जो मानते है की मै ही हूं इस दुनियां के विनाश का कारण….और मै ही हूं इस कहानी का असली……."

                        [ खलनायक ]  

                              










मध्य रात्रि के समय मणिकांत नामक व्यक्ति अपने घर के आंगन में टहल रहा था। उसकी गोद में तकरीबन एक साल का छोटा सा बच्चा था जिसे उसने सीने से लगाया हुआ था। छोटा बच्चा अभी भी सोया हुआ था इसलिए उसे कमरे से बाहर निकलने में कोई मुश्किल नहीं हुई थी। चेहरे पर खौफ साफ झलक रहा था किंतु आंखो में एक दृढ़ विश्वास था।

उसने एक बार उस बच्चे के मासूम से चेहरे की तरफ देखा और धीरे से आह भरी। अगले ही क्षण उसकी नजर खिड़की के रास्ते से होते हुए कमरे में सो रही अपनी पत्नी पर पड़ी। क्या वो अपनी पत्नी को धोखा दे रहा था? हां धोखा ही तो दे रहा था जो उसके जिगर के टुकड़े को हमेशा हमेशा के लिए उससे दूर करने जा रहा था। वो जानता था की अगर इस वक्त उसकी पत्नी जाग रही होती तो वो उसे ऐसा करने से रोक लेती जो इस समय वो करने जा रहा था।

मणिकांत तकरीबन तीस वर्ष का एक पहलवान किस्म का व्यक्ति था जिसके बाल मध्यम आकार के थे और चेहरे पर मूछों का अभाव था वहीं उसकी पत्नी रमा पच्चीस वर्षीय युवती थी जोकि स्वर्ग की अप्सराओं से भी अधिक सुंदर थी। उन दोनो की जिंदगी बहुत अच्छे से व्यतीत हो रही थी जब तक की उनका पाला पड़ नही गया खुद शैतान से……….।

बीते दिनों की स्मृतियों को संजोए वह घर के मुख्य दरवाजे के पास गया। उसके मन की तरह उसके कदम भी भारी हो चुके थे किंतु वह विवश था अपने भाग्य के समक्ष। वह दरवाजे को आहिस्ता से खोलकर घर के बाहर चला गया और उसने दरवाजे को पहले की तरह ही बंद भी कर दिया।

बाकी दिनों की तुलना में आज मौसम का मिजाज भी कुछ बदला बदला सा लग रहा था। हवाएं अपने प्रचंड वेग का प्रदर्शन कर रही थी और मौसम में भी एक अजीब सी गर्माहट छाई हुई थी। घर से बाहर निकलने के तुरंत बाद वह एक संकरी गली से होते हुए तब तक आगे बढ़ता रहा जब तक की वह उस निर्जन स्थान पर नही पहुंच गया जहां एक काली झील उसी के आने की प्रतिक्षा कर रही थी।

रात के अंधेरे में झील बेहद खौफनाक लग रही थी। झील के निकट खड़ी झाड़ियां हवा के झोंको से लहरा रही थी और वहां किसी के होने का आभास करा रही थी। भेड़ियों और जंगली कुत्तों की आवाजे भी आज न जाने क्यों शांत पड़ गई थी। सन्नाटा अपनी चरम सीमा पर था और हवाएं भी आज अपनी सभी सीमाएं लांघ चुकी थी जिसकी वजह से झील का पानी उफान पर था किंतु मजाल है की जो उसकी एक भी लहरे किनारे से बाहर निकल पाई हो। उन्हे देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों किसी ने उन्हें झील की परिधि में ही कैद रहने का श्राप दे दिया हो।

हवा के थपेड़ों को सहते हुए मणिकांत धीरे धीरे दबे कदमों से झील की तरफ बढ़ने लगा। जैसे जैसे वह झील की तरफ बढ़ता जा रहा था, उसके दिल की धड़कन भी तेजी से बढ़ती जा रही थी।

झील के निकट पहुंचते ही वह घुटनो के बल बैठ गया और उसने बच्चे को दोनो हाथों में पकड़कर हवा में ऊपर की और उठा दिया। उसके ऐसा करने से बच्चे की आंख खुल गई लेकिन वह रोया नहीं बल्कि धीरे से किलकारियां मारने लगा।

बच्चे की मासूम सी आवाज सुनकर एक बार को मणिकांत का दिल भर आया लेकिन उसे ऐसा करना ही था इसलिए वह धीरे से उठा और उसने बच्चे को झील के पानी में ऊंचाई से ही छोड़ दिया। इसके बाद क्या हुआ वह देख नही सका क्योंकि देखने के लिए रुकने का साहस उसके अंदर नही था। वह तेज कदमों से उसी रास्ते वापस लौट गया जिस रास्ते वह आया था। उसके दिल के साथ साथ उसकी अंतरात्मा भी चीख चीखकर उसे दोषी ठहरा रही थी। उसके पांव किसी शराबी की तरह लड़खड़ा गए थे। चेहरा आंसुओं से गीला हो गया था। दृढ़ संकल्प और इच्छाशक्ति वाला वह इंसान आज खुद को अपनी ही नजरों में गिरा हुआ महसूस कर रहा था।

उसने दरवाजे को धीरे से खोला और दबे कदमों से घर के अंदर वापस आ गया। उसकी पत्नी अभी भी सो रही थी। आस पास की चीजों का सहारा लेते हुए वह कमरे के अंदर गया और चुप चाप अपनी पत्नी की बगल मे जाकर लेट गया। इसी बीच उसने इस बात का खास ख्याल रखा की उसकी पत्नी जागने न पाए किंतु इसकी संभावना बहुत ही कम थी। उसने अपनी पत्नी को एक खास तरह की औषधि खाने में मिलाकर दी थी जिसकी वजह से वह सुबह तक के लिए एक गहरी नींद में चली गई थी।

मणिकांत इस समय शून्य में ताक रहा था। वो तय नहीं कर पा रहा था कि सुबह होते ही वो अपनी पत्नी को क्या जवाब देगा लेकिन उसे इतना पता था की आने वाले समय में जो कुछ भी होने वाला था उससे उनकी पूरी जिंदगी बदलने वाली थी।



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रमा ने धीरे से अपनी आंखे खोली। सूरज की किरणे उसके सुंदर चेहरे को और भी ज्यादा सुंदर बना रही थी। उसने धीरे से अंगड़ाई ली और उसके हाथ आदतन अपने बच्चें को खोजने लगे। उसकी बेचैनी तब और भी ज्यादा बढ़ गई जब उसे अपना बच्चा कहीं पर भी नजर नहीं आया। उसने अपने पति की तरफ देखा जोकि अभी भी सोया हुआ था।

"प्लीज उठिए…आरू कहीं नजर नहीं आ रहा।" किसी अनहोनी की आंशका से रमा का प्रत्येक शब्द लड़खड़ा रहा था। उसकी जान उसके बच्चे में बसती थी। वो जानती थी की कितने सालो बाद भगवान ने आरुष के रूप में उनकी सूनी गोद को भरा था। आरु उनका इकलौता बेटा था।

"प्लीज उठिए।" मणिकांत के न उठने पर रमा ने उसे झकझोर दिया।

"क्या हुआ रमा तुम इतनी परेशान क्यों हो?" मणिकांत ने अलसाये स्वर में पूछा।

"आरू कहीं नजर नहीं आ रहा।" इतना कहते समय रमा लगभग बिलख पड़ी थी। उसके ऐसा कहते ही मणिकांत तुरंत बैठ गया और अपनी नजरों को इधर उधर दौड़ाकर आरु की तलाश करने लगा। वह पूरी तरह से अनजान बनने की कोशिश कर रहा था और इसमें वह कामयाब भी हो गया था।

"आरू अभी एक साल का भी नही हुआ तो ऐसे कैसे गायब हो सकता है।" मणिकांत के चेहरे पर हैरानी और परेशानी के मिले जुले भाव थे जोकि नकली होते हुए भी असली लग रहे थे। उसने अपनी बीवी की तरफ देखा जोकि बिलख बिलख कर रो रही थी।

"चुप हो जाओ रमा हम ढूंढ निकालेंगे अपने आरु को।" मणिकांत रमा को चुप कराते हुए बोला।

"कोई फायदा नहीं...उसने कहा था कि वो हमसे हमारे बेटे को छीन लेगा और उसने ऐसा कर भी दिया।" रमा की दर्दभरी आवाज सुनकर मणिकांत की भी आंखे भर आई और वह मन ही मन रमा से माफी मांगने लगा। वह इस समय उससे नजरे भी नही मिला पा रहा था।

"अब हमारा बेटा कभी वापस नहीं आएगा।" रमा ने बेड की चादर की तरफ इशारा करते हुए कहा। मणिकांत ने जैसे ही उस तरफ देखा तो उसके भी होश फाख्ता हो गए। बेड की सफेद चादर पर जहां कल रात आरू सोया हुआ था, वहां खून से एक निशान बना हुया था। जब मणिकांत रात के समय वापस घर लौटा था तब वहां ऐसा कोई निशान नहीं था। ये वही निशान था जो हर उस घर में देखने को मिलता था जहां किसी सदस्य की जान शैतान के हाथों गई हो।

मणिकांत वास्तविकता जानता था लेकिन वह सबकुछ जानते हुए भी खामोश था। वह अपनी पत्नी रमा को चुप कराने की कोशिश करने लगा लेकिन उसका गुनेहगार वह खुद था। उसके लिए ही उसने इतना बड़ा कदम उठाया था और और यदि वह ऐसा नहीं करता तो  हमेशा हमेशा के लिए अपनी पत्नी रमा को खो देता। उसने अपनी पत्नी और बच्चे में से अपनी पत्नी को चुना था। उसका जल्दबाजी में लिया गया फैसला कितना सही साबित होने वाला था ये तो आने वाला समय ही बताने वाला था किन्तु इतना तो तय था की इससे कई जिंदगियां प्रभावित होने वाली थी।


To be continued……………


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14 Comments

पहला भाग ही गजब का शानदार है।😳👌चाहे रमा का जिक्र हो या विक्रांत या खलनायक का.... या धरती का प्रलय का जिक्र सब कुछ ऐसे लिखा गया है जैसे कोई उभरा writer हो। विक्रांत का दिल धड़कना... रमा का आरुष के लिए रोना सब बहुत शानदार है। कहानी पूरी तरह रहस्य रोमांच और फंतासी से भरपूर है।🥰🥰 और नाम से तो प्रेम और प्रेरक की श्रेणी में भी लग रहा है देखते है अगला भाग।👍🏻

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shweta soni

23-Jul-2022 05:06 PM

, bahot khub 👌

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Kaushalya Rani

08-Jun-2022 05:34 PM

Nice

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Aakansha Rathour

09-Jun-2022 05:36 AM

❤️❤️

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